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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
अनुवाद वेदों का उद्धार करने वाले, चराचर जगत को धारण करने वाले, भूमण्डल का उद्धार करने वाले, हिरण्यकशिपु को विदीर्ण करने वाले, बलि को छलने वाले, क्षत्रियों का क्षय करने वाले, पौलस्त (रावण) पर विजय प्राप्त करने वाले, हल नामक आयुध को धारण करने वाले, करुणा का विस्तार करने वाले, म्लेच्छों का संहार करने वाले इस दश प्रकार के शरीर धारण करने वाले हे श्रीकृष्ण! मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥12॥ बालबोधिनी - इस गीत गोविन्द काव्य के प्रथम सर्ग के प्रथम प्रबन्धके दश पद्यों में कवि जयदेव जी ने भगवान श्रीकृष्ण के अवतारों की मनोरम लीलाओं का चित्रण किया है। दश अवतार स्वरूप को प्रकट करने वाले श्रीकृष्ण ने मत्स्य रूप में वेदों का उद्धार किया, कूर्म रूप में पृथ्वी को धारण किया, वराह रूप में पृथ्वी का उद्धार किया, नृसिंह रूप में हिरण्यकशिपु को विदीर्ण किया, वामन रूप में बलि को छलकर उसे अपना लिया, परशुराम रूप में दुष्ट क्षत्रियों का विनाश किया, बलभद्र रूप में दुष्टों का दमन किया, बुद्ध के रूप में करुणा का विस्तार किया, कल्कि रूप में म्लेच्छों का नाश किया इस प्रकार दशविध अवतार धारण करनेवाले हे भगवान्र श्रीकृष्ण! आपको नमस्कार है ॥12॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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