गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 60

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्

Prev.png
श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम्
श्रृंणु सुखदं शुभदं भवसारम्।
केशव धृत-दशविधरूप
जय जगदीश हरे ॥11॥

अन्वय - हे केशव! हे धृत-दशविधरूप! (स्वीकृतदशावतार- विग्रह) हे जगदीश, हे हरे, [त्वं] जय (सर्वोत्कर्षेण वर्त्तस्व) तथा उदारं (महार्थयुक्तं) सुखदं (ऐहिकामुष्मिकपरमानन्दप्रदं) शुभदं (कल्याणप्रदं) भवसारं (भवे संसारे सारं सर्वोत्कृष्टंयद्र वा अवताराणां जन्मन: सारम् आविर्भाव-रहस्यं यत्र तत्) श्रीजयदेवकवे: उदितम् (भाषितं) इदं (दशावतारस्तोत्र) श्रृंणु, [अथवा अयि महानुभाव भक्तजन इति अध्याहार्यम्] ॥11॥

अनुवाद - हे जगदीश्वर! हे श्रीहरे! हे केशिनिसूदन! हे दशबिध रूपों को धारण करने वाले भगवन! आप मुझ जयदेव कवि की औदार्यमयी, संसार के संसार स्वरूप, सुखप्रद एवं कल्याणप्रद स्तुति को सुनें ॥11॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः