गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 58

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्

Prev.png
म्लेच्छ-निवहनिधने कलयसि करवालं
धूमकेतुमिव किमपि करालम्।
केशव धृत-कल्किशरीर
जय जगदीश हरे ॥10॥

अन्वय - हे केशव! हे धृत-कल्कि शरीर! [त्वं] म्लेच्छ- निवहनिधने (वेद-बाह्यान् उन्मार्गप्रस्थितान् दुराचारान् हत्वा पुनर्वर्णाश्रम-स्थापनायेत्यर्थ:) धूमकेतुमिव किमपि (अनिर्वचनीयम् अतिशयमित्यर्थ:) करालं (भीषणं) करवालं (अंस) कलयसि (धारयसि) हे जगदीश, हे हरे, त्वं जय ॥10॥

अनुवाद - हे जगदीश्वर श्रीहरे! हे केशिनिसूदन! आपने कल्किरूप धारणकर म्लेच्छों का विनाश करते हुए धूमकेतु के समान भयंकर कृपाण को धारण किया है। आपकी जय हो ॥10॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः