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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
अन्वय - हे केशव! हे सदय-हृदय! (पशुष्वपि करुणामयचित्त) धृतबुद्धशरीर! (बुद्धरूपधर! अहह (खेदे), दर्शित-पशुघातं (दैत्यमोहनाय अहिंसा परमोधर्म इति दर्शित: पशुघात: यस्मिन् तथोक्तं) यज्ञविधे: (क्रतुविधानस्य) श्रुतिजातं (पशुना रुद्रं यजेत इत्यादिकं वेदकामसमूहं) निन्दसि। वेदान् स्वयमेव प्रकाश्य स्वयमेव तान् निन्दसीत्यद्भुतमित्यर्थ: हे जगदीश, हे हरे, त्वं जय ॥9॥ अनुवाद - हे जगदीश्वर! हे हरे! हे केशिनिसूदन! आपने बुद्ध शरीर धारण कर सदय और सहृदय होकर यज्ञ विधानों द्वारा पशुओं की हिंसा देखकर श्रुति समुदाय की निन्दा की है। आपकी जय हो ॥9॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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