गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 56

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्

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निन्दसि यज्ञ-विधेरहह श्रुतिजातम्
सदय-हृदय दख्रशतपशुघातम्र।
केशव धृत-बुद्धशरीर
जय जगदीश हरे ॥9॥

अन्वय - हे केशव! हे सदय-हृदय! (पशुष्वपि करुणामयचित्त) धृतबुद्धशरीर! (बुद्धरूपधर! अहह (खेदे), दर्शित-पशुघातं (दैत्यमोहनाय अहिंसा परमोधर्म इति दर्शित: पशुघात: यस्मिन् तथोक्तं) यज्ञविधे: (क्रतुविधानस्य) श्रुतिजातं (पशुना रुद्रं यजेत इत्यादिकं वेदकामसमूहं) निन्दसि। वेदान् स्वयमेव प्रकाश्य स्वयमेव तान् निन्दसीत्यद्भुतमित्यर्थ: हे जगदीश, हे हरे, त्वं जय ॥9॥

अनुवाद - हे जगदीश्वर! हे हरे! हे केशिनिसूदन! आपने बुद्ध शरीर धारण कर सदय और सहृदय होकर यज्ञ विधानों द्वारा पशुओं की हिंसा देखकर श्रुति समुदाय की निन्दा की है। आपकी जय हो ॥9॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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