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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
घन सम वसन विशद तन धारे, बालबोधिनी - आठवें पद में भगवान के हलधारी श्रीबलराम- स्वरूप की स्तुति की जा रही है। विशद वपु बलराम जी का वर्ण गौर है, वे शुभ हैं। जलदाभ - बलराम जी नील हरित वर्ण का वस्त्र धारण करते हैं। जल से भरे कृष्ण वर्ण के मेघ को जलद कहते हैं। जलदस्य आभा श्यामा यस्य तम यह जलदाभ पद का विग्रह है। जलद कृषक को जिस प्रकार आनन्दित करता है, उसी प्रकार बलराम जी के वस्त्र भक्तों को आनन्द प्रदान करते हैं। हलहति भीति मिलित यमुना भम् हलेन या हति: तद्र भीत्या मिलिता या यमुना तस्या आभा इव आभा यस्य तत्र। भगवान केवल प्रिया-वियोगादि-दु:ख सहन नहीं कर पाते, ऐसा नहीं है। आपने प्रेयसी के श्रम रूप क्लेश को दूर करने हेतु अपनी प्रिय भक्त यमुनाजी को आकर्षित किया है। आपके शुभ् कान्ति विशिष्ट श्रीअंग में धारण किये हुए नील वसनों से ऐसा लगता है मानो आपके हल के प्रहार से भयभीत होकर यमुना जी आपके नीले सुरम्य वस्त्रों में समा गयी हैं। प्रस्तुत पद के नायक श्रीबलराम जी धीर ललित नायक हैं। इन्हें हास्य रस का अधिष्ठाता माना जाता है ॥8॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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