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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
अन्वय - हे केशव! हे धृतभृगुपतिरूप! (धृतपरशुरामविग्रह)। [हैययवंशीयैरुन्मार्ग-प्रस्थितै: नृपकुलापसदै: समाधावासक्तं पितरं महर्षि जमदग्निं निहतमवगम्य पितृ-वधामर्षजकोपात् गुरुतरपरशुमादाय] क्षत्रियरुधिरमये (क्षत्रशोणितरूपे) पयसि (जले) अपगतपापम् (अपगतानि पापानि यस्य तत्र) अतएव शमित-भवतापम् (शमित: उपशमतां प्राप्त: भवस्य संसारस्य ताप: सन्तापो यस्य तादृशं) जगत्र स्नपयसि (प्रक्षालयसि)। हे जगदीश, हे हरे, त्वं जय ॥6॥ अनुवाद - हे जगदीश! हे हरे! हे केशिनिसूदन! आपने भृगु (परशुराम) रूप धारणकर क्षत्रिय कुल का विनाश करते हुए उनके रक्तमय सलिल से जगत को पवित्र कर संसार का सन्ताप दूर किया है। हे भृगुपतिरूपधारिन्, आपकी जय हो ॥6॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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