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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
अन्वय - हे केशव! हे धृतवामनरूप! (वामनरूपधर) हे पद-नख-नीर-जनित-जन-पावन (पदनख-नीरेण पदनखोद्भुतेन गंगाजलेन जनितं जनानां पावनं पवित्रता येन) हे अद्भुतवामन! (अपूर्ववामनमूत्तिधारिन्), विक्रमणे (पादत्रयेन त्रिभुवनाक्रमेण) बलिं (दानवपतिम् अतिदातृत्वगर्विणं) छलयसि (प्रतारयसि)। हे जगदीश, हे हरे, त्वं जय ॥5॥ अनुवाद - हे सम्पूर्ण जगत के स्वामिन! हे श्रीहरे! हे केशव! आप वामन रूप धारण कर तीन पग धरती की याचना की क्रिया से बलि राजा की वञ्चना कर रहे हैं। यह लोक समुदाय आपके पद-नख-स्थित सलिल से पवित्र हुआ है। हे अद्भुत वामन देव! आपकी जय हो ॥5॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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