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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
अन्वय - हे केशव! हे धृत-नरहरिरूप! (नृरहरिरूपधर) तब कर-कमलवरे (पाणिपंकज-श्रेष्ठे) अद्भुतश्रृंग (अद्भुतंश्रृंगम अग्रं यस्य तादृशं) दलित-हिरण्यकशिपु-तनु-भृंग (दलिता विदारिता हिरण्यकशिपो: असुरराजस्य या तनु: शरीरं सा एव भृंग: येन तथाभूतं) नखं [शोभते इति शेष:], [अतिकोमलेन करकमल-केसरेण सुदृढ़-दैत्यदेहरूपभृ दलनम्र अदृष्टचरम्र अतएव अद्भुतम्] हे जगदीश, हे हरे, त्वं जय (सर्वोत्कर्षेण वर्त्तस्व) ॥4॥ अनुवाद - हे जगदीश्वर! हे हरे! हे केशव! आपने नृसिंह रूप धारण किया है। आपके श्रेष्ठ करकमल में नखरूपी अद्भुत श्रृंग विद्यमान है, जिससे हिरण्यकशिपु के शरीर को आपने ऐसे विदीर्ण कर दिया जैसे भ्रमर पुष्प का विदारण कर देता है, आपकी जय हो ॥4॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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