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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-सम्पुट लीला
हे लाड़िली, कहा आपकूँ मेरी सखी बनिवे में संकोच लगै है? देखौ, मैं तो देबी है कैं हूँ आपकी है गई हूँ। यह निस्चय जानौ आपके प्रेम-समुद्र के एक कण मात्र के अनुभव ते आपकी दासी बननौ चाहूँ हूँ। हे राजकुमारी, अब मेरे मन की कथा कूँ स्रवन करौ। जा कारन सौं मेरे मन में दुखद विषाद उत्पन्न भयौ, ता संसय कौ हूँ आप छेदन करौ।
हे राधे, बृंदाबन में जो बेनु धुनि होय है, वाही कौ पराक्रम हमारे स्वर्ग में ऐसी प्रबलता कूँ प्राप्त होय है कि स्रवन मात्र सों ही देवांगना अपने पतीन कौं आलिंगन त्याग दैं हैं, और विसेष अप्सरा प्रेमरूपी ज्वर सौं मूर्च्छित होय हैं और परस्पर में प्रेम वार्ता करिवे लगैं हैं- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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