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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
(तुक)
- तब तिनही मैं तैं निकसे नँद-नंदन पिय यौं।
- दृष्टि बंध कै दुरै बहुरि प्रगटै नटबर ज्यौं।।
- पीत बसन, नमाल, बनी मंजुल मुरली हथ।
- मंद मधुरतर हँसत निपट मनमत के मनमथ।।
- पियहि निरखि तिय बृंद उठीं सब इकै बार यौं।
- परि घट आए प्रान बहुरि उझकत इंद्री ज्यौं।।
- महा छुधित कौं जैसैं असन सौं प्रीति सुनी है।
- ताहू तैं सतगुनी, सहसगुनि, कोटिगुनी है।
- दौरि लपटि गई ललित लाल, सुख कहत न आवै।
- मीन उछरि कै पुलिन परै पुनि पानी पावै।।
- कोउ चटपटि सौं उर लपटी, कोउ करबर लपटी।
- कोउ गल लपटी, कहति भलें भलें कान्हर कपटी।।
- कोउ नगधर बर पिय की गहि रहि परिकर पटुकी।
- जनु नव घन तैं सटकि दामिनी घटा सुँ अटकी।।
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