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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
प्रथमं शतकम्
जिस धाम में कोकिलाएं उदात्त (ऊंची) पञ्चम स्वर में आलाप करती हैं, वंशी की सुमोहन तान के साथ जिस स्थल पर सुमधुर संगीत श्रुति गोचर होता है, जिस धाम के प्रति वृक्ष की शाखाओं पर मयूरों की ताण्डव-नृत्य सहित अस्फुट मधुर ध्वनि होती है, जहाँ के लता एवं वृक्ष समूह (फल-फूलों से) उल्लसित हो रहे हैं, जो धाम मञ्जुल निकुञ्जों से सुशोभित है, जहाँ नाना प्रकार के बिहंग-कुल एवं पशु विहरते हैं, तथा नाना विध दिय सरोवर एवं नदियाँ पर्वताकीर्ण हैं - ऐसे श्री वृन्दावन धाम का मैं ध्यान करता हूँ।।7।।
स्थूल, सूक्ष्म, कारण एवं तुरीय ब्रह्म, श्री वैकुण्ठ, द्वारका, जन्म भूमि (मथुरा-गोकुल) श्री कृष्ण की गोचारण स्थली श्री वृन्दावन, एवं श्री वृन्दावन मध्य वत्र्ती गोपियों की क्रीड़ा-भूमि (ये उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं)।।8।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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