श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती पृ. 14

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श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
प्रथम अध्याय

अस्माकन्तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थ तान् ब्रवीमि ते॥7॥
अनुवाद- हे द्विजश्रेष्ठ! आपकी सूचना के लिए मैं अपनी सेना के उन सेना नायकों का नाम उल्लेख कर रहा हूँ जो कि सैन्य संचालन में विशेष रूप से कुशल हैं॥7॥

भावानुवाद- यहाँ ‘निबोध’ शब्द का तात्पर्य है - समझें तथा ‘संज्ञार्थम्’ का अर्थ है- सम्यक् ज्ञान के लिए।।8।।

भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जय:।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिर्जयद्रथ: ॥8॥
अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता: ।
नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्धविशारदा: ॥9॥

अनुवाद- आप स्वयं (द्रोणाचार्य), पितामह भीष्म, कर्ण, समरविजयी कृपाचार्य, आश्वत्थाम, विकर्ण, सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा एवं सिन्धुराज जयद्रथादि शूरवीर मेरे पक्ष में हैं ॥8॥
और भी मेरे लिये जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित और सभी युद्ध में चतुर हैं ॥9॥

भावानुवाद- यहाँ ‘सोमदत्तिः’ का उल्लेख भूरिश्रवा के लिए हुआ है। जीवन धारण करने से अथवा जीवन त्याग करने से मेरा महान उपकार होगा- यह समझकर जो व्यक्ति कुछ भी करने के लिए तत्पर हैं, उसके लिए ‘त्यक्तजीविताः’ का प्रयोग हुआ है। श्रीगीता [1] में भगवान की उक्ति है कि हे अर्जुन! ये सभी मेरे द्वारा पहले ही निहत हो चुके हैं, तुम केवल निमित्त बन जाओ। इस उक्ति के अनुसार सरस्वती देवी दुर्योधन के मुख से उनकी सेनाओं के लिए ‘त्यक्तजीविताः’ अर्थात् मरे हुए हैं - यह सूचित करा रही हैं।।8-9।।

सारार्थ वर्षिणी प्रकाशिका वृत्ति-

कृपाचार्य- एक समय की बात है, ‘जानपदी’ नामक अप्सरा के दर्शन से गौतम गोत्रीय शरद्वान् ऋषि का वीर्य सरकण्डे के समूह पर स्खलित हुआ और दो भागों में विभक्त हो गया। उसी से एक पुत्र और एक कन्या का जन्म हुआ। कन्या का नाम ‘कृपी’ हुआ और पुत्र महाबली ‘कृप’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। शरद्वान् ऋषि ने ही इन्हें धनुर्वेदादि में पारंगत किया। ये अत्यन्त वीर, पराक्रमी तथा धर्मात्मा थे। महाभारत युद्ध में इन्होंने कौरवों के पक्ष से युद्ध किया था। महाराज युधिष्ठिर ने युवराज परीक्षित की शिक्षा के लिए इन्हें नियुक्त किया था।

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श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
अध्याय नाम पृष्ठ संख्या
पहला सैन्यदर्शन 1
दूसरा सांख्यायोग 28
तीसरा कर्मयोग 89
चौथा ज्ञानयोग 123
पाँचवाँ कर्मसंन्यासयोग 159
छठा ध्यानयोग 159
सातवाँ विज्ञानयोग 207
आठवाँ तारकब्रह्मयोग 236
नवाँ राजगुह्मयोग 254
दसवाँ विभूतियोग 303
ग्यारहवाँ विश्वरूपदर्शनयोग 332
बारहवाँ भक्तियोग 368
तेरहवाँ प्रकृति-पुरूष-विभागयोग 397
चौदहवाँ गुणत्रयविभागयोग 429
पन्द्रहवाँ पुरूषोत्तमयोग 453
सोलहवाँ दैवासुरसम्पदयोग 453
सत्रहवाँ श्रद्धात्रयविभागयोग 485
अठारहवाँ मोक्षयोग 501
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