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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-चिन्तन-2
इस प्रकार से जो भगवान को अपना सर्वस्व अर्पण करके, सारी ममता उन्हें देकर श्रीभगवान के चरण-सेवा की आकांक्षा ही जो रखते हैं उनके इस प्रकार के चित्त की जो गति है उसका नाम है ‘शुद्धा भक्ति।’ उसका नाम है निर्गुणाभक्ति’, प्रेमाभक्ति। यह भक्ति रहती है श्रीगोपांगनाओं में इसलिये इस प्रसंग में यहाँ पर श्रीकृष्ण भगवान का रमण-रसास्वादन है- यह श्रीगोपांगनाओं में स्वरूपानन्द वितरण है। यह यहाँ रमण का अर्थ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विनय पत्रिका/103
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