रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 61

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


अब दास्य रति आयी। जैसे एक कोई महाराजा है किसी देश का और वह अपनी सारी प्रजा पर बहुत अधिक ममत्व रखता है और प्रजाजन भी उसको अपना उत्तम से उत्तम श्रेष्ठ पूज्य मानते हैं और उसकी सेवा करते हैं पर प्रत्यक्ष सेवा नहीं मानते हैं। प्रजा की भाँति सार्वजनिक सेवा मानते हैं। राजा भी उनको अपना मानता है और वे भी। उनको अपना मानने के नाते उनका अपनापन है। परन्तु उसमें कोई खास नजदीक की बात नहीं है। वह अनुकूल ही चलते हैं और वह उन पर कृपा भी करता है परन्तु यह नहीं कि उनसे कह दे कि एक गिलास पानी ले आओ। आज रात हमारे पलंग के पास बैठकर हवा करो। हमारी धोती धो दो। यह बात प्रजा से राजा नहीं कहता है। लेकिन राजा ने किसी को महल में नौकर रख लिया तो नौकर जिसको रखा वह आया प्रजा में से ही, तो प्रजा का जो भाव था वह भाव तो उसमें है ही। दूसरा नजदीक का भाव और हो गया कि वह खास सेवक भी हो गया। खास सेवक होने से वह कुछ और नजदीक आ गया तो उसमें सेवानन्द आस्वादन आरम्भ हो गया।

एक तो ममता का आनन्द और एक ममतास्पद वस्तु में भोग का आनन्द-इन दोनों में जरा भेद होता है। ऐसा देखा जाता है कि किसी आदमी को कोई धन-सम्पत्ति प्राप्त हो जाय, कोई पदार्थ प्राप्त हो जाय तो उसमें उसकी मेरेपन की बुद्धि हो जाती है। यह मेरा है। इतना आनन्द तो उसे मिल गया। कोई भूखा आदमी था और उसको मिठाई की थाली मिल गयी। यह आनन्द तो हो गया पर जब वह उसको खायेगा तब विशेष आनन्द और आयेगा। एक ममतास्पद वस्तु का आनन्द है और दूसरा ममतास्पद वस्तु के भोग का आनन्द है।

शान्त रस में ममतास्पद वस्तु का आनन्द है और दास्य रति में ममतास्पद वस्तु के भोग का आनन्द आरम्भ हो जाता है। दास जो है वह फिर हमेशा पास रहता है। यह नहीं कि प्रजा की तरह अपना समय पर आवे और समय पर जाय। दास जो है उसकी नियुक्ति होती है खास काम के लिये। सेवक के अलग-अलग काम होते हैं। कोई सेवक बड़ा विश्वस्त होता है कि गुप्तकाम, खास काम राजा उसी से लिया करता है। सेवक का तारतम्य है। एक बात सेवक में होनी चाहिये वह बड़े काम की बात; सेवक में सेवा को छोड़कर अपने किसी काम की चिन्ता नहीं रहनी चाहिये। कोई इसीलिये शान्त हुए बिना-शान्त रस की प्राप्ति हुए बिना दास्य रस की प्राप्ति प्रायः नहीं कर सकता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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