रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 237

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला (पदों में)

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थीं वे विकसित शारदीय

था विशुद्ध वितरण माधव का ‘निज-स्वरूप-आनंद’ महान।
था यह परम ‘रसास्वादन’ का निज में ही निज का सुविधान।।
आस्वादक आस्वाद्य न दो थे, था मधुमय लीला-संचार।
था यह एक विलक्षण पावन परम प्रेमरस का विस्तार।।
मधुर परम इस रस-सागर में गोपीजन का ही अधिकार।
परम त्याग का मूर्त रूप लख, जिन्हें किया हरि ने स्वीकार।।
प्रेममयी ब्रज-रमणी-गणमण्डल में हुए सुशोभित श्याम।
अगणित राशि तारिका में अकलंक पूर्ण विधु विमल ललाम।।
अथवा नव नीलाभ-श्याम-घन दामिनि-दल में रहे विराज।
घन-दामिनि, दामिनि-घन अन्तर अगणित उभय अतुल दुति साज।।
रासेश्वरी राधिका के एकाधिपत्य में सुन्दर साज।
शुचि सौन्दर्य मधुर रसमय असमोर्ध्व अमित बिजली-घनराज।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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