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थीं वे विकसित शारदीय
- था विशुद्ध वितरण माधव का ‘निज-स्वरूप-आनंद’ महान।
- था यह परम ‘रसास्वादन’ का निज में ही निज का सुविधान।।
- आस्वादक आस्वाद्य न दो थे, था मधुमय लीला-संचार।
- था यह एक विलक्षण पावन परम प्रेमरस का विस्तार।।
- मधुर परम इस रस-सागर में गोपीजन का ही अधिकार।
- परम त्याग का मूर्त रूप लख, जिन्हें किया हरि ने स्वीकार।।
- प्रेममयी ब्रज-रमणी-गणमण्डल में हुए सुशोभित श्याम।
- अगणित राशि तारिका में अकलंक पूर्ण विधु विमल ललाम।।
- अथवा नव नीलाभ-श्याम-घन दामिनि-दल में रहे विराज।
- घन-दामिनि, दामिनि-घन अन्तर अगणित उभय अतुल दुति साज।।
- रासेश्वरी राधिका के एकाधिपत्य में सुन्दर साज।
- शुचि सौन्दर्य मधुर रसमय असमोर्ध्व अमित बिजली-घनराज।।
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