रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 234

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला (पदों में)

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थीं वे विकसित शारदीय

मुरली के मधु स्वर में पाकर प्रियतम का रसमय आह्वान।
हुई सभी उन्मत्त, चलीं तज लज्जा, धैर्य, शील, कुल-मान।।
पति, शिशु, गृह, धन, धान्य, वस्त्र, भूषण, गौ, कर भोजन का त्याग।
चलीं जहाँ जो जैसे थीं, भर मन में प्रियतम का अनुराग।।
नहीं किसी से पूछा कुछ भी, कहा न कुछ भी, चित्त विभोर।
चलीं वेग से जहाँ बजाते थे मुरली मधु नन्द-किशोर।।
प्रेमविवर्धक मुरली-स्वर से हो अति विह्वल व्रजनारी।
पहुँची तुरत निकट प्रियतम के भूल स्व-पर की सुधि सारी।।
थीं वे कृष्णगृहीत-मानसा, थीं वे उज्ज्वल रस की मूर्ति।
थीं वे शुचितम प्रेमपूर्ण नटवर की मधुर लालसा-पूर्ति।।
आत्मनिवेदन, पूर्ण समर्पण था पवित्रम उनका भाव।
जिसमें था न स्व-सुख-वाच्छा का किंचित् लेश, न किंचित् चाव।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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