रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 191

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

दूसरा अध्याय

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तैस्तैः पदैस्तत्पदवीमन्विच्छन्त्योऽग्रतोऽबलाः।
वध्वाः पदैः सुपृक्तानि विलोक्यार्ताः समब्रुवन्।।26।।

उन चरण-चिह्नों के सहारे प्रियतम श्रीकृष्ण को ढूँढती हुई वे व्रजसुन्दरियाँ आगे बढ़ीं तो उन्हें श्रीकृष्ण के चरण-चिह्नों के साथ ही किसी व्रज वधू के भी चरण चिह्न दिखायी दिये। उन्हें देखकर वे अत्यन्त पीड़ित हुईं और परस्पर कहने लगीं।।26।।

कस्याः पदानि चैतानि याताया नन्दसूनुना।
अंसन्यस्तप्रकोष्ठायाः करेणोः करिणा यथा।।27।।

ओह! जैसे हथिनी अपने प्रियतम गजराज के साथ जाती हो और गजराज उस हथिनी के कंधे पर अपनी सूँड रख दे और दोनों मिलकर चलें, वैसे ही अपने कंधे पर श्री श्यामसुन्दर की भुजा को धारण किये हुए उनके साथ-साथ चलने वाली किस सौभाग्यवती व्रजसुन्दरी के ये दूसरे चरण चिह्न हैं?।।27।।

अनयाऽऽराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वरः।
यन्नो विहाय गोविन्दः प्रीतो यामनयद् रहः।।28।।

निश्चय ही यह हम लोगों का मन हरण करने वाले सर्वशक्तिमान श्रीकृष्ण की आराधना करने वाली - उनसे परम प्रेम करने वाली आराधिका[1] होगी। उस परम प्रेम के फलस्वरूप ही इस पर रीझकर गोविन्द श्रीकृष्णचन्द्र इस बड़भागिनी को एकान्त में ले गये हैं और हम लोगों को वन में छोड़ दिया है।।28।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री राधिका

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