रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 190

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

दूसरा अध्याय

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बद्धान्यया स्त्रजा काचित् तन्वी तत्र उलूखले।
भीता सुदृक् पिधायास्यं भेजे भीतिविडम्बनम्।।23।।

इतने में एक गोपी ने व्रजेश्वरी श्री यशोदा जी का भाव ग्रहण किया, दूसरी एक गोपी श्रीकृष्ण के भाव से भावित हुई। यशोदा बनी गोपी ने फूलों की माला से श्रीकृष्ण बनी गोपी को ऊखल से बाँधने की भाँति बाँध दिया। तब वह श्रीकृष्ण बनी हुई व्रजसुन्दरी डरी हुई-सी अपने सुन्दर नेत्रों वाले मुख को हाथों से ढँककर, जिस प्रकार श्रीकृष्ण यशोदा मैया के द्वारा बाँधे जाने पर भयभीत हो गये थे, ठीक उसी प्रकार रुदन आदि भय की चेष्टाओं का अनुकरण करने लगी।।23।।

एवं कृष्णं पृच्छमाना वृन्दावनलतास्तरून्।
व्यचक्षत वनोद्देशे पदानि परमात्मनः।।24।।

इस प्रकार वृन्दावन के वृक्ष-लताओं से श्रीकृष्ण का पता पूछती हुई वे वन में एक ऐसे स्थान पर पहुँची, जहाँ उन्हें अकस्मात् परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र के चरण चिह्न दिखायी पड़े।।24।।

पदानि व्यक्तमेतानि नन्दसूनोर्महात्मनः।
लक्ष्यन्ते हि ध्वजाम्भोजवज्राङ्कुशयवादिभिः।।25।।

चरण चिह्नों को देखकर वे परस्पर कहने लगीं - ये चरण चिह्न निश्चय ही महात्मा पुरुषोत्तम नन्दनन्दन श्री श्याम सुन्दर के हैं, क्योंकि इनमें ध्वजा, कमल, वज्र, अंकुश, जौ आदि के चिह्न स्पष्ट दिखायी दे रहे हैं।।25।।

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