रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 133

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन

इसलिये यहाँ जो चीज है वह अत्यन्त दिव्य होने पर भी इस भाव के अनुरूप इसका नाम है - जारभावमयप्रेम। यह श्रीगोपांगनाओं का श्रीकृष्ण के प्रति था और उनकी उस उत्कंठा ने ही उनके द्वारा सर्वत्याग करवा दिया। वे सर्वस्व त्याग करके, सर्वस्व का सर्वथा परित्याग करके श्रीकृष्ण के चरणों में जाकर उपस्थित इस प्रकार से हो गयीं कि जैसे कोई नित्य-नित्य सदा के लिये भगवत-चरणारविन्द का किंकर होकर उनके चरणों में स्थान पा जाता है। भगवान की यह लीला परम मधुर परम दिव्य है। श्रीगोपियाँ वहाँ गयीं। इसके बाद श्रीकृष्ण रासस्थली से जब अन्तर्धान हुये तो वहाँ पर ‘अनयाऽऽराधितो नूंन भगवान हरिरीश्वरः’[1] यह वर्णन है। इस श्लोक में श्री राधिका का ही सौभाग्य कीर्तन गोपियों के द्वारा किया गया है। राधिका के प्रेम में कोई विशेषत्व है जो और कहीं नहीं है। इसलिये उनके साथ लीला-विलास में ही श्रीकृष्ण पूर्ण आनन्दास्वादन करते हैं और वहीं मिलन हुआ। यही रासलीला में अभिप्रेत है।

यह माना गया है कि इस लीला में प्रधान नायिका दो हैं। सर्वगोपी प्रधान दो हैं एक श्रीराधिकाजी और एक श्री चन्द्रावली जी। इन दोनों के दो समूह हैं, अलग-अलग। इनमें श्रीराधिका जो हैं वे श्रीकृष्ण की नित्य वल्लभा हैं।
तयोरप्युभयोर्मध्ये राधिका सर्वथाधिका।
महाभावस्वरूपेयं गुणैरतिवरीयसी।।[2]

यह जीवगोस्वामी के वाक्य हैं कि राधिका जी और चन्द्रावली जी दोनों ही यूथेश्वरी हैं और दोनों ही सर्वप्रधाना है और दोनों में राधिका जी श्रेष्ठ मानी गई हैं। क्योंकि ये महाभावस्वरूपा हैं और श्रीकृष्ण की जिससे प्रीति होती है, सुख होता है इस प्रकार के अनन्तगुणों से समन्विता हैं। इन राधिका के साथ मिलन रसास्वादन के लिये ही श्रीकृष्ण का यह अनन्य उत्कण्ठायुक्त प्रयास है। राधिका के साथ विविध विलास ही श्रीकृष्ण का पूर्णतम सम्भोग है। यह सम्भोग का अर्थ पहले आ गया है। सम्भोग का अर्थ है-मिलन, सम्भोग का अर्थ है-स्वरूपानन्द वितरण, सम्भोग का अर्थ है-प्रेमास्पद की सुख-सम्पत्ति का सम्पादन। यहीं पर पूर्णतम है। यहाँ इस योगमाया शब्द के द्वारा इसीलिये राधिका का अर्थ किया। श्रीकृष्ण का पूर्ण सम्भोग की बात यहाँ पर कहनी है और पूर्ण सम्भोग राधिका के बिना सम्भव नहीं। श्रीकृष्ण श्रीराधिका के मिलन का रसास्वादन करना चाहते हैं। इसीलिये अंसख्य गोपियों का यहाँ आवाहन है।

राधा-सह क्रीड़ा-रसवृद्धिर कारण।
आर सब गोपीगण रसोपकरण।।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 10।30।28
  2. उज्ज्वल नीलमणि। राधा प्र.।2
  3. चै. च. 1।4। 177

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