राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 350

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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पावस-विहार-लीला

पद (राग-गौड़ सारंग, ताल-झूमरा)

छबीले नील घन की पूतरी क्रीड़त बृंदाबन माँहीं।
बिबिध भूषन धरें बंसी अधर धरि चलत देखत परछाँहीं।।
सबके हिय करषत, सोभा-बूँदन बरषत,
गोपीजन-लोचन-चातक निरखत जिवाहीं।
नंददास कोऊ एक दामिनि-सी ढिंग
ठाड़ी ताके गरें बर दियें बाँहीं।।

अर्थ- हे सखी! आज प्रिया प्रीतम की कैसी अद्भुत सोभा बनी है। मानों कोऊ रस-समूह सोभायुक्त नीले मेघ की रस-सार छबीली पूतरी या श्रीबन में क्रीड़ा करि रही होय। प्रीतम ने पाग, मुकुट, लर, कडूला, बाजू कौस्तुभमनि, नच्छत्रमाला, किंकिनी, कुंडल, निरमोला, बेसर, चिबुक, मयूराकृत कुंडल, मोतिन के झौंरा, कंठसरी, गुंजा, बनमाला, बघना, नूपुर, मुद्रिका आदि अनेक प्रकार के आभूषन धारन किये हैं. और इत कूँ प्यारी नें रत्न-जटित चंद्रिका, बंदनी, खुटिला, सीसफूल, लरी, तरकी, नथ, झूमकी, हँसुलिया, बिजाँयठे, अंगद, बलय, पहुँची, मुद्रिका, बाजू, चूरी, हार, हमेल, दुलरी, चिबुक, नौगरी, बरा, छुद्रघंटिका, जेहर, तेहर, साँठ, नूपुर, अनवट, बिछिया आदि अनेक प्रकार के आभूषन धराये हैं। और जब दौनौं चलैं हैं, तब अपनी परछाँहीं कूँ देखि कैं कैसे प्रसन्न होयँ हैं। और सबन के मन कूँ बरबस अपनी ओर आकर्षित करि लेयँ हैं। और हम गोपीजनन के चातकरूप नेत्रन कूँ मधुर हास सौं अनेक लीलान द्वारा रस-बरषा करि सुख देते रहैं हैं। और जैसैं मेघ बीजुरी कूँ अपने अंक में छिपाय राखै है, तैसैं ही प्रीतम अपनी प्रिया के गरे में बाँह डारें या बन में क्रीड़ा करि रहे हैं। सखी! आज की सोभा तौ अद्भुत ही बनी है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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