राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 336

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीकेवट लीला

अर्थ- हे राधे! आप या नील वस्त्र कूँ उतारि देउ। यदि कहूँ पबन कूँ भ्रम है गयौ कि या नैया में मेघ बैठ्यौ है, या कूँ उड़ाय के लै चलूँ और यदि पवन जोर सौं चलैगौ तो नैया चक्कर खाय डूब जायगी। फिर मैं अपने कुटुम्ब कौ पालन काहे सौं करूँगौ।

सखी-

(श्लोक)

शुक्लं तद् वसनान्तरं परिदधाम्यादौ तवेदं वपुः।
श्यामं श्यामनवीनवारिदसमं तक्रे समाच्छाद्यताम्।।

अर्थ- अरे मल्लाह! हम तौ तेरे कहिबे ते स्वेत वस्त्र धारन करि लैंगी। पर तेरौ सरीर तौ नवीन मेघ जैसौ है; यदि वायु कूँ भ्रम है गयौ तौ नैया डूब जायगी। यासौं हम उपाय बतावैं हैं; हमारे मटुकान में छाछ है, यासौं तू न्हाय लै तौ तेरौ अंग स्वेत है जायगौ।
(दोहा)

समाजी-
धसि-धसि जल पलटीं सबै भीजत बसन डराय।
अंकम भरि-भरि धींवरे दीनी सबहि चढ़ाय।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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