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श्रीकेवट लीला
- देश बिराना रे भोले पथिक!
- ले समझ मित्र है कौन तेरा। पग.।।1।।
- समझ रुख हवा रँग लगी है दिखाने।
- इसका मरम जान ले रे दिवाने!
- ज्ञानी थके रे, गुमानी, यहाँ पल
- में लुट जाय लाखों का डेरा ।पग.।।2।।
- यह तन है टूटी नवरिया रे प्रानी!
- इस में न भर जाय पापों का पानी।
- नादान केवट! सम्हल के चलौ, मीत!
- माया-भँवर ने तू घेरा। पग.।।3।।
- बादल बिपति के, अँधेरी हैं रातें।
- भजन सार, सब झूँठी दुनिया की बातें।
- लखौ स्याम पुतली में उसकी झलक,
- मित्र! हो जाय पल में सबेरा। पग.।।4।।
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