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श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला
- सखी-
- करुनामय नाम तिहारौ। अब ता तन नैंकु निहारौ।।
- उत्कंठा करि तिय आवै। जो नायक बहुरि पठावै।।
- याकौ अपराध महा है। तुम समुझत कहुँ कहा है।।
- हरि! ऐसी करै न कोई। यह पुरुष-धरम ना होई।।
- मन-मोहन सौं रति माँडै। कैं प्रान तुरत ही छाँड़ै।।
- समाजी-
- जब सुनी सखी की बानी। हरि महा निठुरई ठानी।।
- श्रीकृष्ण-
- मत बार-बार यहँ आवौ। मोहिन बिनु अपराध सतावौ।।
- संकेत-सदन है मेरौ। मग जोवत प्यारी केरौ।।
- कहुँ प्यारी आनि सुनैंगी। तौ मोते मान करैंगी।।
- तब कैसैं धीर धरूँगौ। सखि पायँन परत फिरूँगौ।।
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