राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 274

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीसिद्धेश्वरी-लीला

(तुक)

अपबल, तपबल और बाहुबल, चौथी है बल दाम।
सूर किसोर कृपा सौं सब बल हारे कौ हरि नाम।।4।।

भैयाऔ, संसार में चार बल हैं- देह-बल, जन-बल, धन-बल और तप-बल। इनके ही बल सौं बलबलाय कैं जीव मूल हरि बल कूँ भूलि जाय है। जब दल-दल में गाड़ी अटकि जाय है, तब सबरे बल धरे रहि जायँ हैं। फिर वाकूँ चारों ओर अंधकार ही अधंकार दीखिबे लगे है। ऐसे समय में नास्तिक आसुरी जीवन के ताईं और कोई सहारौ नहीं दीखै है; सो वे तौ अँधेरे में टकराय मरैं हैं। और जो श्रद्धालु आस्तिक दैवी जीव हैं, वे दुःखहारी मुरारी ने नखचंद्र की छटा सौं सब अंधकार कूँ पार करि जाय हैं। यासौं प्रेम सौं ‘हरि बोल, हरि बोल।’

(सखी मैया सौं जाय कैं खबर करै)

मैया, ये सिद्धेस्वरी जू पधारी हैं।

(मैया उठि कैं चरन पखारै, आसन पै बिराजमान करै)

मैया- हे जोगिन जी! देखौ तौ, मेरे लाला कूँ न जानें कहा भयौ है। न तौ कछु भोजन करै न दूध ही पीवै। कृपा करि याकूँ अच्छौ करि देउ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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