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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीसिद्धेश्वरी-लीला(तुक)
भैयाऔ, संसार में चार बल हैं- देह-बल, जन-बल, धन-बल और तप-बल। इनके ही बल सौं बलबलाय कैं जीव मूल हरि बल कूँ भूलि जाय है। जब दल-दल में गाड़ी अटकि जाय है, तब सबरे बल धरे रहि जायँ हैं। फिर वाकूँ चारों ओर अंधकार ही अधंकार दीखिबे लगे है। ऐसे समय में नास्तिक आसुरी जीवन के ताईं और कोई सहारौ नहीं दीखै है; सो वे तौ अँधेरे में टकराय मरैं हैं। और जो श्रद्धालु आस्तिक दैवी जीव हैं, वे दुःखहारी मुरारी ने नखचंद्र की छटा सौं सब अंधकार कूँ पार करि जाय हैं। यासौं प्रेम सौं ‘हरि बोल, हरि बोल।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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