राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 226

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

श्रीजी- हे सुंदरी, अनुमान होय है कि तुम कूँ कोई अंतरंग ब्यथा है, अन्यथा तुम्हारी ये दसा न हौंती। हे पिय पद्मनने, मेरे प्रति बिस्वास स्थापन करि कैं अपने हृदय की सब ब्यथा कहौ, जासौं तुम्हारौ दुख दूर करिबे के लिए कोई जतन करूँ।
(दोहा)

अंतरंग दुख ते दुखित चलत दीर्घ तव स्वास।
अपने सुहृदन के निकट करिये ताहि प्रकास।।

अर्थ- हे भामिनी! अंतरंग विषादरूपी फोरा ते उत्पन्न जो असहनीय दुख है, वो अपने सुहृदन के आगें प्रकास करिबे तें ही सांत होयगौ।
(दोहा)

कै तुम बिरहिनि नायिका (कै) पति-चरित्र बिपरीत।
कै निज कृत अपराध सौं ह्वै रहिहौ भयभीत।।
अथवा झूठे दोष कौ कोउ जन दियौ कलंक।
कै कुरूप पति देखि कैं है मुख मलिन मयंक।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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