राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 224

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

सखी-

(दोहा)

प्यारी-आग्या पाय कैं करूँ प्रस्न मैं जाय।
उर-अंतर कौ भेद लै सीघ्र निबेदूँ आय।।

(संस्कृत)

अहो कृशोदरि त्वं कुत आगता अथ किंवा कृत्यं कार्यम् अस्ति, ब्रूहि।

अर्थ- हे किसोरी! तुम कौन हो, कहाँ ते आई हौ, और यहाँ आयवे को तुम्हारो प्रयोजन कहा है? यदि तुम कूँ बतायबे में संकोच नहीं होय तौ हमारी प्यारीजी कौ कौतूहल निवारन करौ। अरे, कहा कारन है, ये तौ बौलैहू नाँय।
[श्रीजी के पास जाय कैं]
(संस्कृत)
हे किसोरि, मया पृष्टा उत्तरं न ददौ किञ्चित; श्रीमत्या प्रष्टव्यम्।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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