राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 123

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(श्लोक)

स्वागतं वो महाभागाः प्रियं किं करवाणि वः।
व्रजस्यानामयं कच्चिद् ब्रूतागमनकारणम्।।

अर्थ- हे महाभागिनी गोपियौ! पधारौ, तुम्हारौ स्वागत है। कहौ, मैं तुम्हारी कहा सेवा करूँ! कहौ, ब्रज में सब की कुसल तो है न? कछू उपद्रव तो नहीं आयौ? या समय तुम यहाँ मेरे पास कहा प्रयोजन तैं आई हौ, वा है कहौ।
सखी- हे स्यामसुंदर, हम तौ आपके दरसन करिबे आई हैं।

ठाकुरजी- (श्लोक)

(रजन्येषा घोररूपा घोरसत्त्वनिषेविता।)

प्रतियात व्रजं नेह स्थेयं स्त्रीभिः सुमध्यमाः।।

अर्थ- हे सुंदरियौ, एक तौ यह रात्रि कौ समय है, जो सुभाव सौं ही भयानक है; फिर यह बन बाघ, सिंह आदि हिंसक जीवन सूँ भर्यौ है। तुम सब स्त्री हौ, सुभाव सौं ही डरौगी। यासौं सीघ्र अपने घरन कूँ चली जाऔ। रात में तुम सब कौ यहाँ रहवौ उचित नहीं है।
(श्लोक)

मातरः पितरः पुत्रा भ्रातरः पतयश्च वः।
विचिन्वन्ति ह्यपश्यन्तो मा कढ्वं बन्धुसाध्वसम्।।

अर्थ- हे गोपियौ, तुम्हारे माता-पिता, भाई-बंधु, पति-संबंधी तुम कूँ घर में न देखि कैं ढूँढ़ते होयँगे, याते घर कूँ जाऔ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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