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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला(श्लोक)
अर्थ- हे महाभागिनी गोपियौ! पधारौ, तुम्हारौ स्वागत है। कहौ, मैं तुम्हारी कहा सेवा करूँ! कहौ, ब्रज में सब की कुसल तो है न? कछू उपद्रव तो नहीं आयौ? या समय तुम यहाँ मेरे पास कहा प्रयोजन तैं आई हौ, वा है कहौ।
(रजन्येषा घोररूपा घोरसत्त्वनिषेविता।)
अर्थ- हे सुंदरियौ, एक तौ यह रात्रि कौ समय है, जो सुभाव सौं ही भयानक है; फिर यह बन बाघ, सिंह आदि हिंसक जीवन सूँ भर्यौ है। तुम सब स्त्री हौ, सुभाव सौं ही डरौगी। यासौं सीघ्र अपने घरन कूँ चली जाऔ। रात में तुम सब कौ यहाँ रहवौ उचित नहीं है।
अर्थ- हे गोपियौ, तुम्हारे माता-पिता, भाई-बंधु, पति-संबंधी तुम कूँ घर में न देखि कैं ढूँढ़ते होयँगे, याते घर कूँ जाऔ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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