भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 97

भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

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अध्याय-2
सांख्य-सिद्धान्त और योग का अभ्यास

  
48.योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनञ्जय ।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

(48)हे धन को जीतने वाले (अर्जुन) तू योग में स्थित होकर, सब प्रकार की आसक्ति को त्यागकर, सफलता और विफलता में मन को समान रखते हुए अपना काम करता जा; क्यों कि मन की समता ही योग कहलाती है। योगस्थ: अपनी आन्तरिक शान्ति में स्थिर।समत्वम्: आन्तरिक सन्तुलन। यह अपने-आप को वश में करना है यह क्रोध, आशुक्षोभ, अभियान और महत्त्वाकांक्षा को जीतना है।हमें परिणामों के प्रति उदासीन रहते हुए पूरी शान्ति से काम करना चाहिए। जो व्यक्ति किसी आन्तरिक विधान के कारण कर्म करता है, वह उसकी अपेक्षा ऊँचे स्तर पर है, जिसके कर्म अपनी सनकों या वहमों के अनुसार किए जाते हैं। जो लोग कर्म के फलों की इच्छा से कर्म करते हैं, वे पूर्वजों या पितरों के लोक में जाते हैं और जो ज्ञान की खोज करते हैं, वे देवताओं के लोक में जाते हैं। [1]

49.दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय ।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥

(49)केवल कर्म बुद्धि के अनुशासन (बुद्धि योग) से बहुत घटिया है। हे धन को जीतने विाले (अर्जुन), तू बुद्धि में शरण ले। जो लोग (अपने कर्म के) फल की इच्छा करत हैं, वे दयनीय हैं।बुद्धियोग। साथ ही देखिए 18,57।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शंकराचार्य से तुलना कीजिएः द्विप्रकारं च वित्तं मानुषं दैव च, तत्र मानुष वित्तं कर्मरूपं पितृलोकप्राप्तिसाधनम्, विद्या च दैवं वित्तं देवलोकप्राप्तिसाधनम्। 2, ।

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भगवद्गीता -राधाकृष्णन
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
परिचय 1
1. अर्जुन की दुविधा और विषाद 63
2. सांख्य-सिद्धान्त और योग का अभ्यास 79
3. कर्मयोग या कार्य की पद्धति 107
4. ज्ञानमार्ग 124
5. सच्चा संन्यास 143
6. सच्चा योग 152
7. ईश्वर और जगत 168
8. विश्व के विकास का क्रम 176
9. भगवान अपनी सृष्टि से बड़ा है 181
10. परमात्मा सबका मूल है; उसे जान लेना सब-कुछ जान लेना है 192
11. भगवान का दिव्य रूपान्तर 200
12. व्यक्तिक भगवान की पूजा परब्रह्म की उपासना की अपेक्षा 211
13. शरीर क्षेत्र है, आत्मा क्षेत्रज्ञ है; और इन दोनों में अन्तर 215
14. सब वस्तुओं और प्राणियों का रहस्यमय जनक 222
15. जीवन का वृक्ष 227
16. दैवीय और आसुरीय मन का स्वभाव 231
17. धार्मिक तत्त्व पर लागू किए गए तीनों गुण 235
18. निष्कर्ष 239
19. अंतिम पृष्ठ 254

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