प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्यउस विश्व विमोहन बालकृष्ण का ध्यान पगली यशोदा कैसे भुला दे। वह बाल छबि क्या भुला देने की वस्तु है? उस प्राण प्यारे कान्ह को कोई कैसे ध्यान पथ से हटा सकेगा? मियाँ रसखानि ने कैसा साफ कहा है कि भाई! खुशनसीब तो वही गिना जाएगा, जिसने नन्दनन्दन की वह बचपने को भोली सूरत टुक निहार ली है। एक दिन धूलि धूसरित बाल गोविंद अपने आँगन में ठुमुक ठुमुक खेल रहे थे। माखन रोटी भी हाथ में लिये खाते फिरते थे। पैरों में पैजनियाँ रुनक झुनक बज रही थीं। पीली कछोटी काछे हुए थे और छीनी झंगुलिया पहने थे। मौज में खेल रहे थे। इतने में एक कौआ कहीं से उड़ता हुआ आया और गोपाल के हाथ से उनका माखन और रोटी छीनकर ले गया। आप, ‘मैया! मेरी माखन लोटी, ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ’ करते हुए रोने लगे। उस काग के भाग्य की सराहना कहाँ तक की जाय! उस जूठी माखन रोटी को छीन लेने के लिए ऐसा कौन अभागा होगा, जो कौआ बनने को उत्कण्ठित और अधीर न होता होगा। अहा! धूरिमरे अति सोभित स्यामजू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी। भक्तवर भुशुण्डि ने काक योनि में इसीलिए जन्म लेना स्वीकार किया था कि दशरथ कुमार राम जहाँ जहाँ खेलते खाते फिरेंगे तहाँ तहाँ भी उनके साथ साथ उड़ता फिरूँगा और जो जूठन आँगन में गिरेगी, उसे बड़े चाव से उठा उठाकर खाऊँगा- लरिकाई जहँ जहँ फिरहिं, तहँ तहँ संग उड़ाऊँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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