प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम का अधिकारीप्रेम का असली अधिकारी करोड़ों में कहीं एक मिलता है। दर्द का मर्म किसी कस कीले दिलवाले के ही आगे खोला जाता है। जो स्वयं ही प्रेमी नहीं, वह प्रेम का भेद कैसे समझ सकेगा? कबीर साहब इस बेदर्दी दुनिया के रंग ढंग से ऊबकर अपने मन से कहते हैं कि अपनी राम कहानी किसे जाकर सुनायें, अपना रोना किसके आगे रोया जाय? दर्द तो कोई जानेगा नहीं, उलटे सब हँसेंगे- इससे अपनी मीठी मनोव्यथा मन में ही छिपा रखनी चाहिए। अनाधिकारियों के आगे अपना दुख रोने से लाभ ही क्या? व्यथा को बाँट लेने वाला तो कोई है नहीं, सुनकर लोग उलटे अठलायँगे। रहीम का यह सरस सोरठा किस सहृदय की आँखों से दो बूँद आँसू न गिरा देगा- मन ही रहिए गोय, ‘रहिमन’ या मन की व्यथा। कहो, किसे प्रेम का अधिकारी समझें! किसे अपनी प्रेम गाथा सुनायें। क्या कहा कि किसी पंडित या ज्ञानी को अपनी व्यथा कथा क्यों नहीं सुना देते, क्या ज्ञानी भी तुम्हारी प्रेम वेदना सुनने का अधिकारी नहीं है? नहीं, वह प्रेम प्रीत का अधिकारी नहीं है। वह विद्याभिमानी ज्ञानी प्रेम कथा को क्या समझेगा- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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