प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 245

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य

महाकवि देव ने निम्नांकित पद्य में वात्सल्य रस को कैसी दिव्य धारा बहायी है। नन्दनन्दन गिरिराज को उँगली पर उठाये खड़े हैं। यशोदा अपने छोटे से कन्हैया का यह दुस्साहस देखकर घबरा रही है। कहाँ तो मेरे बच्चे की यह नन्ही सी बाँह और कहाँ यहु गगनचुम्बी गोवर्धन गिरि और तिस पर प्रलयंकर इन्द्र का कोप!

मेरे गिरिधारी गिरि धारय्यौ धरि धीरजु,
अधीर जनि होहि अंगु लचकि लुरकि जाय;
लाड़िले कन्हैया बलि गई बलि भैया,
बोलि ल्याहूँ बल भैया, आय डरपै उरकि जाय।
टेक रहि नेक जौलौं हाथ न पिराय, देखि,
साथु सँगु रीते अँगुरीतें न बुरकि जाय;
परय्यौ ब्रज बैर बैरी बारिद वाहन बारि,
बाहन के बोझ हरि बाँह न मुरकि जाय।।

बाँह के लचक या मुरक जाने में संदेह ही क्या है। पर यह कन्हैया किसी को माने तब न? किया क्या जाय, बड़ा हठी है। आज अक्रूर के साथ मथुरा जाने को राम और कृष्ण अधीर हो रहे हैं। अरे भाई, सभश्री तो वहाँ जा रहे हैं। फिर ये बच्चे हैं, इन्हें जाने का उमाह क्यों न हो? पर माता यशोदा कैसे जाने देंगी। अपने हृदय दुलारे छोटे से कान्ह को वह कैसे अपनी आँखों की ओट करेंगी? उनका यह भी कहना है कि मथुरा जैसी विशाल नगरी में मेरे ये छोटे छोटे बालक जाकर करेंगे क्या? नागरिकता ये गँवार देहाती लड़के क्या जानें! इन्होंने तो अब तक गायें ही चरायी हैं। यमुना और वृन्दावन ही इन्होंने देखा है। कहीं उस नगरी की गलियों में ये भोले बच्चे भूल न जायँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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