प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 161

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम और विरह

दे दे कोई इन योगिनियों को प्रेमरस की मधुमयी मधुकरी भिक्षा। नीरस ज्ञान की बातों से इनकी भूख शान्त होने की नहीं-

अँखिया हरि दरसन की भूखी।
कैसे रहैं रूप रस राची, ये बतियाँ सुनि सूखी।। - सूर

भूल होगी, भारी भूल होगी। तुम्हारे पास अभी क्यों कोई संदेसा भिजवाया जाय। क्यों तुम्हें उलाहना दें। हमारी विरह दशा अभी पराकाष्ठा को पहुँची ही कहाँ? अभी तुम्हारी प्यारी याद पर हमने यह घायल दिल कुर्बान नहीं किया। प्यारे, अभी तुम्हारी याद में यहां फना हुआ ही क्या है? विरह तो वह, जो विरोही के समस्त अहंकार को प्रियतम की प्रतीक्षा में लय कर दे। सो वह बात अभी यहाँ कहाँ? तुम्हें यहाँ तक खींच लाने की हमारे दिल में अभी तक वह ताकत ही नहीं आयी। पहले अपने दिल के घर में तुम्हारी लगन की वह आग लगा लें, जो यहाँ का सब कुछ खाक कर दे, तब कहीं तुम्हारे पास कोई संदेसा भेजें, तब तुम्हारी निठुराई पर तुम्हें उलाहना दें। अभी से यह क्यों कहें कि-

थक गये हम करते करते इंतजार;
एक कयामत उनका आना हो गया!

तब तक यही हसरत क्यों न दिल में रक्खी जाय कि-

खुदा करे, कि मजा इन्तजार का न मिटे,
मेरे सवाल का वह दें जवाब बरसों में।

क्योंकि-

है वस्ल से जियादा मजा इन्तजार का।

मिलन की अपेक्षा प्रिय मिलन की प्रतीक्षा में कहीं अधिक आनन्द है। खैर, हमारे सवाल का जवाब वह चाहे जब दें, पर उन्हें यह याद तो जरूर दिलाते रहें कि-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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