प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम और विरहदे दे कोई इन योगिनियों को प्रेमरस की मधुमयी मधुकरी भिक्षा। नीरस ज्ञान की बातों से इनकी भूख शान्त होने की नहीं- अँखिया हरि दरसन की भूखी। भूल होगी, भारी भूल होगी। तुम्हारे पास अभी क्यों कोई संदेसा भिजवाया जाय। क्यों तुम्हें उलाहना दें। हमारी विरह दशा अभी पराकाष्ठा को पहुँची ही कहाँ? अभी तुम्हारी प्यारी याद पर हमने यह घायल दिल कुर्बान नहीं किया। प्यारे, अभी तुम्हारी याद में यहां फना हुआ ही क्या है? विरह तो वह, जो विरोही के समस्त अहंकार को प्रियतम की प्रतीक्षा में लय कर दे। सो वह बात अभी यहाँ कहाँ? तुम्हें यहाँ तक खींच लाने की हमारे दिल में अभी तक वह ताकत ही नहीं आयी। पहले अपने दिल के घर में तुम्हारी लगन की वह आग लगा लें, जो यहाँ का सब कुछ खाक कर दे, तब कहीं तुम्हारे पास कोई संदेसा भेजें, तब तुम्हारी निठुराई पर तुम्हें उलाहना दें। अभी से यह क्यों कहें कि- थक गये हम करते करते इंतजार; तब तक यही हसरत क्यों न दिल में रक्खी जाय कि- खुदा करे, कि मजा इन्तजार का न मिटे, क्योंकि- मिलन की अपेक्षा प्रिय मिलन की प्रतीक्षा में कहीं अधिक आनन्द है। खैर, हमारे सवाल का जवाब वह चाहे जब दें, पर उन्हें यह याद तो जरूर दिलाते रहें कि- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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