गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 90

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ तृतीय सन्दर्भ
3. गीतम्

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उन्मद-मदन-मनोरथ-पथिक-वधू-जन-जनित-विलापे ।
अलिकुल-संकुल-कुसुम-समूह-निराकुल-वकुल-कलापे
विहरति हरिरिह सरस वसन्ते.... ॥2॥


मृगमद-सौरभ-रभसवशम्बद नवदलमाल-तमाले।
युवजन-हृदय-विदारण-मनसिज-नखरुचि-किंशुकजाले
विहरति हरिरिह सरस वसन्ते.... ॥3॥


मदन-महीपति-कनक-दण्डरुचि-केशर-कुसुम-विकासे।
मिलित-शिलीमुख-पाटल-पटल-ड्डत-स्मर-तूण-विलासे
विहरति हरिरिह सरस वसन्ते.... ॥4॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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