गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 91

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ तृतीय सन्दर्भ
3. गीतम्

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विगलित-लज्जित-जगदवलोकन-तरुण-करुण-कृतहासे।
विरही-निकृन्तन-कुन्त-मुखाकृति-केतकि-दन्तुरिताशे
विहरति हरिरिह सरस वसन्ते.... 5

माधविका-परिमल-ललिते नवमालिकयातिसुगन्धौ।
मुनि-मनसामपि मोहन-कारिणि तरुणाकारणबन्धौ
विहरति हरिरिह सरस वसन्ते.... 6

स्फुरदतिमुक्तालता-परिरम्भण-पुलकित-मुकुलित चूते।
वृन्दावन-विपिने परिसर-परिगत-यमुनाजलपूते
विहरति हरिरिह सरस वसन्ते.... 7

श्रीजयदेव-भणितमिदमुदयतु हरिचरणस्मृतिसारं ।
सरस-वसन्त-समय वनवर्णनमनुगत मदन-विकारम्र
विहरति हरिरिह सरस वसन्ते.... 8


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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