गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 89

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ तृतीय सन्दर्भ
3. गीतम्

Prev.png

वसन्त-राग यति-तालाभ्यां गीयते

(सरस वसन्त समय)

यह तीसरा प्रबन्ध वसन्तराग तथा यति-ताल से गाया जाता है। वसन्त राग का स्वरूप है।

शिखण्ड-बर्होच्चय-बद्धचूड़: पुष्णन् पिकं चूत-नवांकुरेण।
भ्रमन् मुदा-राममनंग मूर्त्तिर्मर्त्तोमातंगो हि वसन्तराग:

अर्थात् वसन्तरागयुक्त पुरुष का सिर मयूरपिच्छ से बँधा होता है। आम्रमंजरी तथा लताओं से वह श्रेष्ठ कोयल समूह को परिपुष्ट बनाता रहता है। सशरीर कामदेव के समान वह प्रसन्न मदमत्त गजराज के समान भ्रमण करता है।

ललित-लव लता-परिशीलन-कोमल-मलय-समीरे
मधुकर-निकर-करम्बित-कोकिल-कूजित-कुञज-कुटीरे।
विहरति हरिरिह सरस-वसन्ते....
नृत्यति युवतिजनेन समं सखि विरहि-जनस्य दुरन्ते ॥1॥ ध्रुवम्र


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः