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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
शुभदं-शुभदायी होने से परमात्मा की प्राप्ति के समस्त प्रतिबन्धकों का विनाश करने वाला है। भवसारम- संसाररूपी सागर को पार करने के जितने भी साधन हैं, उन सब में प्रधान है। भवच्छेदक हेतु मध्ये सारम-यह मध्यपदलोपी समास 'भवसारम्' पद में जानना चाहिए। जय- वर्त्तमानकालिक क्रियापद के द्वारा यह सूचित होता है कि भगवान के समस्त अवतार नित्य एवं उनकी लीलाएँ भी नित्य हैं। कवि ने यह भी प्रमाणित कर दिया है कि श्रीकृष्ण सभी अवतारों के मूल कारण हैं। उन्हीं से सभी अवतारों का प्राकट्य हुआ है, वे सभी रूपों में सत्य हैं, अतएव पूर्णावतारी, नित्य लीला विलासी, दशावतार स्वरूप, सर्वाकर्षक एवं आनन्द प्रदाता आपकी नित्य ही जय जयकार हो। उदात्त तथा सरल भाषा में मैंने आपकी स्तुति की है। आप इसका श्रवण करें। आपका भक्त कवि जयदेव आपको यह स्तुति निवेदन कर रहा है। प्रस्तुत श्लोक में शान्त रस तथा पर्यायोक्ति अलंकार है ॥11॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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