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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
श्रीजयदेव कथित हरि-लीला, बालबोधिनी - इस प्रकार दशावतार स्तुति के अन्त में महाकवि जयदेव प्रत्येक रस के अधिष्ठान स्वरूप एक-एक अवतार का जयगान कर अब समस्त रसों के अधिनायक श्रीकृष्ण से निवेदन करते हैं कि हे दशविध स्वरूप! आपकी जय हो। सुखद- सद्य: परनिवृत्तिकारक होने के कारण यह स्तुति काव्य श्रवण काल में ही परमानन्द प्रदान करने वाला है। यह स्तोत्र जगन्मड्गलकारी है जो कि आपके आविर्भाव के रहस्यों को अभिव्यक्त करने वाला है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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