गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 61

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्

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पद्यानुवाद

श्रीजयदेव कथित हरि-लीला,
सुनो सुखद यह शुभ गतिशीला।
केशव दशविध-रूप लसे, जय जगदीश हरे ॥11॥

बालबोधिनी - इस प्रकार दशावतार स्तुति के अन्त में महाकवि जयदेव प्रत्येक रस के अधिष्ठान स्वरूप एक-एक अवतार का जयगान कर अब समस्त रसों के अधिनायक श्रीकृष्ण से निवेदन करते हैं कि हे दशविध स्वरूप! आपकी जय हो।

सुखद- सद्य: परनिवृत्तिकारक होने के कारण यह स्तुति काव्य श्रवण काल में ही परमानन्द प्रदान करने वाला है। यह स्तोत्र जगन्मड्गलकारी है जो कि आपके आविर्भाव के रहस्यों को अभिव्यक्त करने वाला है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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