गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 49

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्

Prev.png

पद्यानुवाद

छलित नृपति बलि अद्भुत वामन,
पदनख नीर हुए जन पावन।
केशव वामन-रूप लसे, जय जगदीश हरे ॥5॥

बालबोधिनी - पाँचवे पद्य में वामनदेव की स्तुति की गयी है। राजा बलि की यज्ञशाला में जाकर आपने भिक्षा के छल से त्रिविक्रमरूप धारण कर ऊपर नीचे के समस्त लोक नाप लिये हैं। छलयसि इसमें वर्त्तमान कालिक क्रिया पद का प्रयोग है, अर्थात्र बलि को अपने वरदान से अनुग्रहीत कर उसके साथ पाताल में निवास करते हैं और अनादि काल से ही अद्भुत वामन बनकर उसे छला करते हैं। पदनख नीर जनित जन पावन से तात्पर्य है कि उन्होंने अपने पद-नखों से श्रीगंगा को यहाँ प्रकटकर समस्त संसार को पावन किया है। ब्रह्मा जी ने पृथ्वी नापते समय भगवान के चरणों को ब्रह्मलोक में देखकर अर्घ्य चढ़ाया। वही जल श्रीगंगा जी के रूप में परिणत हो गया। आपकी जय हो। इस पद्यमें अद्भुत रस है, यहाँ पर श्रीभगवान सख्य रस के अधिष्ठाता रूप में प्रकाशित हुए हैं ॥5॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः