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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:
द्वाविंश: सन्दर्भ:
22. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- प्रस्तुत प्रबन्ध के इस आठवें पद्य के द्वारा कवि जयदेव कहते हैं कि हे भक्तजनों! कवि-शिरोमणि जयदेव की कविता के कारण श्रीकृष्ण के आभूषणों की शोभा द्विगुणित हो गयी है अथवा जयदेव कवि द्वारा कथित श्रीकृष्ण का वैभव द्विगुणित अलंकारों से युक्त है। चिरकाल से सञ्चित पुण्योदय के तत्त्वरूप श्रीकृष्ण को चित्त में धारण कर उन्हें प्रणाम कीजिए। बड़े पुण्यों से ऐसे श्रीकृष्ण मन में उदित होते हैं, वे श्रीराधा के संग से जुड़कर द्विगुणित भूषण के भार से श्रीराधा से जुड़कर द्विगुणित हो जाते हैं। ऐसे श्रीकृष्ण जिन्हें श्रीराधा निरन्तर देख रही हैं, नित्यकाल के लिए हृदय में विराजमान हो जायें। श्रीगीतगोविन्द काव्य के इस बाईसवें प्रबन्ध का नाम 'सानन्द गोविन्दराग श्रेणिकुसुमाभरण' है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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