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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:
द्वाविंश: सन्दर्भ:
22. गीतम्
श्रीजयदेवकवि-भणित-विभव-द्विगुणीकृत-भूषणभारम्। अनुवाद- श्रीजयदेव कवि द्वारा विरचित विविध अलंकृत वाक्यरूप अलंकार से जिनके परिहित भूषण-राशि की शोभा द्विगुणित हो गयी है, हे रसिक भक्तों! कृत-पुण्यों के फलस्वरूप उन श्रीकृष्ण को हृदय में यत्न के साथ धारण कर आप उन्हें प्रणाम करें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- [भो: साधव:] श्रीजयदेव-भणित-विभव-द्विगुणीकृत-भूषण-भारं श्रीजयदेवस्य भणितमेव विभव: समृद्धि: तेन द्विगुणीकृत: नितरां परिवर्द्धित इत्यर्थ: भूषणस्य अलंकारस्य भार: गौरवं यत्र तादृशं) [यै: स्वयमलंकृतं ते अलंकारा: जयदेवस्य उपमादि-वाग्विलासै: द्विगुणीकृता इत्यर्थ:] [तथा] सुकृतोदयसारम् (सुकृतस्य पुण्यविशेषस्य य उदय आविर्भाव: फलमितियावत् तस्य सारभूतं) हरिं सुचिरं [यथा तथा] हृदि (चित्तमध्ये) विनिधाय (भक्तिभरेण स्थापयित्वा) प्रणमत ॥8॥
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