गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 434

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:

एकविंश: सन्दर्भ:

21. गीतम्

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बालबोधिनी- कवि जयदेव इस अष्टपदी को श्रीहरि चरणों में समर्पित करते हुए कहते हैं- हे मुरारे! जयदेव कविराज के इस गीत को श्रवणकर आप सबका हजारों प्रकार से मंगल विधान करें।

लक्ष्मी जी का एक नाम पद्मावती है, जयदेव की पत्नी का नाम भी पद्मावती है। पद्मावती के आराधक हैं जयदेव जो कविराजों में सर्वश्रेष्ठ हैं। अत: कविराजवर श्रीहरि से प्रार्थना करते हैं- हे मुरारे! मैंने प्रासाद के अन्तर में पद्मावती की प्रतिष्ठा की है, आपकी प्रसन्नता के लिए यह कविता की है, आप प्रसन्न होवें और हमारा शतश: मंगल करें।

अथवा श्रीजयदेव स्वयं श्रीराधा से अनुरोध कर रहे हैं जो लक्ष्मी की सारी सम्पदा, सारा सुख लेकर आज उपस्थित हैं, आप उन मुरारि के लिए सौ-सौ प्रकार के मंगल विधान करें। उनका मंगल तुम्हारे साथ रमण ही है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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