गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 425

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:

एकविंश: सन्दर्भ:

21. गीतम्

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पद्यानुवाद
चल राधा! प्रिय ढिग उपवन में
मंजु कुंजतल अति मनभावन।
विहँस विलस रति केलि-सदन में
चल राधा! पिय-ढिग उपवन में॥

बालबोधिनी- सखी श्रीराधा से कहती है- रतिक्रीड़ा के उत्साह से प्रसन्नमुख वाली हे राधिके! अब तो प्रेम के आवेग में तुम मुस्कराकर हर्षित हो रही हो, इस मनोहर झुरमुट के बीच में ही केलिगृह बना हुआ है, उसी क्रीड़ागृह में जाइए और माधव के समीप जाकर उनके साथ रमण कीजिए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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