गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 396

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

दशम: सर्ग:
चतुरचतुर्भुज:

ऊनविंश: सन्दर्भ:

19. गीतम्

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बालबोधिनी- इस प्रकार अपनी प्रिया के गुण-कीर्तन के आवेश में अत्यन्त संकटपूर्ण स्थिति में श्रीराधा जी के स्पर्श- सुखानुभूति का स्मरण श्रीकृष्ण के द्वारा होने पर कवि जयदेव सभी को आशीर्वाद प्रदान कर रहे हैं कि श्रीहरि आप लोगों का प्रीति-वद्धर्न करें। जब भगवान् श्रीकृष्ण का कंस के हाथी कुवलयापीड़ के साथ युद्ध हुआ, तब उस युद्ध-स्थल में उस हाथी के कुम्भस्थल को देखकर उन्हें श्रीराधा जी के पीन पयोधरों का स्मरण हो आया। उस हाथी के स्पर्श से उन्हें श्रीराधा जी के स्पर्शानुभूति जन्य सात्त्विक भाव का उदय हुआ। उस श्रृंगारिक आनन्द में विह्वल हो जाने से अर्थात् श्रीराधा जी के मिलन-जन्य आनन्द के स्मरण से उन्होंने अपने नेत्र बन्द कर लिये। तब कंस के सभासदों को यह समझकर आनन्द हुआ कि हमारी जीत हो गयी है, श्रीकृष्ण ने भयभीत होकर अपनी आँखें बन्द कर ली हैं। पर जैसे ही श्रीकृष्ण ने व्यामोह वाक्यों की उच्च ध्वनि का श्रवण किया, तब अतिशीघ्र स्वयं को संभाल लिया और क्षणभर में ही उस हाथी को पछाड़कर मार गिराया। तब उसी शत्रु पक्ष में उन्हीं सभासदों के मुख से अचानक यह ध्वनि निकल पड़ी श्रीकृष्ण जीत गये, जीत गये। यह ध्वनि आनन्ददायक कोलाहल बन गई।

इस प्रकार यह सर्ग श्रीराधा के स्मरण-जनित विकार के वर्णन से युक्त है। इस विकार भाव द्वारा माधव अत्यन्त मनोहर वेश धारण किये हुए हैं।

इति दशम सर्ग।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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