गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 587

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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पंचदश अध्याय

अब पंद्रहवाँ अध्याय प्रारम्भ करते हैं। भगवान् बोले कि आओ, थोड़ वेद का भी परिपोषण किया जाय। हम वेद का परिपोषण करने के लिए ही तो सभी साधनों का परिपोषण करते जा रहे हैं। हमने तत्वासक्ति का संशोधन चौदहवें अध्याय में किया है- ‘सुखसंगेन बध्नाति ज्ञानसंगेन चानाघ’। इसलिए गुणातीत हो जाओ। गुणी बनने की कोशिश मत करो, छोड़ो इनको। यह बात मैं पहले सुना चुका हूँ।

अब यह कि जिस वेद के बारे में लोगों का इतना आग्रह होता है वह क्या है? इस संबंध में थोड़ा सोचना चाहिए, विचार करना चाहिए। पहले श्लोक में जो कहा गया है कि ‘यः तं वेद स वेदवित्’- वेदवित् में उपसंहार नहीं है, उपसंहार उन्नीसवें श्लोक में है- ‘स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत।’ वेदवित् से उपक्रम है और सर्ववित् से उपसंहार है। अब जरा इनको मिलाकर देखो कि उपक्रम उपसंहार की एकता होने पर क्या होगा? यह होगा कि जो वेदवित् है वह सर्ववित् है और जो सर्ववित् है वह ही वेदवित् है। अब बताओ कि वेदवित् और सर्ववित् कौन है? अरे, मैं ही वेदवित् हूँ।

इसको फिर से सुन लो। ‘यस्तं वेद स वेदवित्’- यह है उपक्रम, ‘स सर्ववित् भजति माम् सर्वभावेन भारत’- यह है उपसंहार, ‘अहमेव वेदवित्’- यह है अभ्यास और ‘वेदैश्च सर्वैरहमेववेद्यः’- संपूर्ण वेदों का तात्पर्य मुझमें है। यही है वेद का ज्ञान।

श्रीभगवानुवाच-
ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥1

एक पीपल का पेड़ है, दूसरा गूलर का पेड़ है और तीसरा बड़ का पेड़ है। शास्त्र में इन तीन पेड़ों का वर्णन आता है। संस्कृत में पीपल को अश्वत्थ, गूलर को उदुम्बर और बड़ को बट कहते हैं। गूलर का पेड़ ब्रह्मा का है, पीपल का पेड़ विष्णु का है और बड़ का पेड़ रुद्र् का है। अश्वत्थ वृक्ष ब्रह्माश्वत्थ और कर्माश्वत्थ- दो प्रकार का होता है। माने एक कर्म के पीपल का पेड़ और दूसरा ब्रह्म के पीपल का पेड़। उपनिषद् में आया है कि-

ऊर्ध्वमूलोऽर्वाक्शाखः एषोऽश्वत्थः सनातनः।
                  तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म तदेवामृतमुच्यते।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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