गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 588

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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पंचदश अध्याय

इसमें जो ब्रह्माश्वत्थ है- ‘तेदव शुक्रं तद् ब्रह्म तदेवामृतमुच्यते’- यही शक्तिमत् है, यही ब्रह्मस्वरूप है और यही अमृतस्वरूप है। शुक्र माने साधन का वीर्य। साधन का वीर्य शुक्र है, वह ब्रह्मस्वरूप है और अमृत उसमें मोक्षफल है, माने ब्रह्माऽश्वत्थ साधनात्मक, फलात्मक और स्वरूपात्मक है। दूसरा जो कर्माश्वत्थ है, उसका भी वर्णन वेद में हैं-

अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता। [1]

आप पीपल के पेड़ पर रह रहे हैं और उसके पत्ते पर आपका घर बना हुआ है, नगर बना हुआ- ‘अश्वत्ते निषदनम्।’ पीपल के पेड़ पर तो भूत प्रेत रहते हैं और ‘पर्णे वो वसतिष्कृता’- वह जो हिलता हुआ उसका पत्ता है, उसी पर आपका घर-नगर बना हुआ है। वह कभी भी पानी के बूँद की तरह टपक सकता है। यह कर्माश्वत्थ है। इसमें आश्चर्य क्या है?

‘ऊर्ध्वमूलमधः शाखम्’- इसकी जड़ ऊपर है और शाखाएँ नीचे हैं। सबसे ऊपर क्या है? ब्रह्म है। वह इसकी जड़ है। ऐसा पेड़ आपने देखा है? मैंने तो देखा है। हाँ, ऐसा ही पेड़ देखा है, जिसकी जड़ ऊपर है, मूल ऊपर है और शाखा नीचे है। मैं वह पेड़ आपको यहीं दिखा सकता हूँ, आप यहीं देख लीजिये। ये जो हम सबके शरीर हैं, ये क्या है? इनके हाथ नीचे लटक रहे हैं, पाँव नीचे लटक रहे हैं- ये अधःशाखम् हैं कि नहीं है? इनका ऊर्ध्व मूल कहाँ है? वह सिर की ओर है। आपने देख लिया कि नहीं? यह शरीर की ऊर्ध्वमूलमधःशाखम् है। यही है वह जो ‘यथा पिण्डे तता ब्रह्माण्डे’ है। ब्रह्मलोक ऊपर है और वही इसका सिर है। ऊर्ध्व परमात्मा ही इसका मूल है और इसकी ब्रह्मलोकादि, रुद्रलोकादिरूप जो शाखाएँ हैं वे नीचे की फैली हुई हैं।

अश्वत्थम्’- अश्वत्थ माने ‘श्वोऽपि न तिष्ठति’- यह कल तक रहने वाला नहीं है, बदल जायेगा।

असल में यह ब्रह्माश्वत्थ और कर्माश्वथ के मूल का वर्णन है। जैसे घोड़ा चतुष्पाद होता है, वैसे ही यह अश्वत्थ है- ‘अश्वत् तिष्ठति इति अश्वत्थः।’ इसी तरह ब्रह्म होता है चतुष्पाद। घोड़ा जब विश्राम करने लगता है तो उसके तीन पाँव धरती पर रहते हैं और वह एक पाँव ऊपर उठा लेता है। इसी तरह ब्रह्म के जो तीन पाद हैं, वे विश्व, तैजस्, प्राज्ञ- प्रपंच हैं। और उसका जो चौथा पाद है, वह है तुरीय। उसको उसने उठाकर अलग रक्खा है। इसलिए वह ‘अश्वत् तिष्ठति इति अश्वत्थः’ है। इसके तीन पाँव धरती पर हैं और एक पाँव प्रपंच से ऊपर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (ऋग. 10.97.5)

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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