गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 415

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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नवम अध्याय

अब आओ नववें अध्याय में प्रवेश करें। इसमें भी बहुत मजेदार बात है। सांख्य और योग के ये छह अध्याय जो हैं, इन्हें मधुसूदन सरस्वती, केशव कश्मीरी, रामानुजाचार्य ने द्वितीय षट्क कहा है। इनमें से पहले दो अध्यायों में तो पहले सांख्य साधन, और योगसाधन दोनों को गीतोक्त तत्वज्ञान से समन्वित किया? अब जरा भक्तियोग पर भी एक नजर डालें औरउसे गीतोक्त योग के साथ समन्वित करें। इसमें भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी महिमा का बड़ा भारी वर्णन किया है।

एक महात्मा थे, जो अपनी महिमा का वर्णन कर रहे थे। कहते ते कि मैं शुद्ध-बुद्ध-मुक्त हूँ, अद्वितीय हूँ, ब्रह्म हूँ। मैंने कहा कि महाराज, आप अपने मुँह मिया-मिट्ठू क्यों बनते हैं? अपनी इतनी तारीफ क्यों करते हैं? वे बोले कि देखो, मैं अपने को जितना जानता हूँ उतना दूसरे को जानते ही नही हैं; इसलिए मैं अपनी महिमा नहीं बताऊँगा तो दूसरे लोग क्या बतायेंगे? दूसरे लोग जानेंगे कैसे, कि हमारा क्या स्वरूप है, हमारी क्या महिमा है? डरना तो उन लोगों को चाहिए, जो देह-बुद्धि से हड्डी-मांस-चाम के एक परिछिन्न पुतले को ईश्वर के सिंहासन पर बैठाते हैं। जो परिच्छिन्नता को काटकर अपने स्वरूप का ब्रह्मरूप से वर्णन करते हैं, वे तो पहले अपने व्यक्तित्व की बलि चढ़ा लेते हैं, फिर परमात्मा का वर्णन करते हैं। जो व्यक्तित्व की बलि चढ़ाये बिना अपनी महिमा का वर्णन करता है, वह तो हड्डी-मांस-चाम की महिमा का ही वर्णन करता है। यहाँ तो अपना व्यक्तित्व है ही नहीं।

श्रीभगवानुवाच

इदं तु ते गुह्रातमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥[1]

“इदं तु ते गुह्यतमम्’- भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि अर्जुन, मैं अब तुम्हें गुह्यतम बात बताता हूँ। अबतक क्या बता रहे थे महाराज! बोले कि अब तक गुह्य बात बता रहा था, अब गुह्यतम बात बताता हूँ। जैसे गुह्य, गुह्यतर, गुह्यतम होता है, वैसे ही मैंने एक फाटक पार किया तो उसका माल-मसाला दिखाया, फिर दूसरा फाटक पार किया तो उसका माल-मसाला दिखाया और अब तीसरे फाटक के भीतर तुम आ गये हो, अब देखो कि इसमें क्या है!


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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