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गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
नवम अध्याय‘प्रवक्ष्याम्यनसूसवे’- यहाँ मानों अर्जुन बोले कि भाई, हमारे अन्दर कोई विशेषता होगी, तब तो तुम इतनी गुह्यतम बात बताते हो! भगवान् बोले कि हाँ, ‘अनसूयवे’। अब तक मैंने जो बात बतायी है, उसमें तुमने मेरे गुण में कोई दोष नहीं निकाला है। देखो, अगर हम किसी से कोई बात बताने लगें और वह काट-कूट शुरू कर दे, तो यही कहेंगे कि जा, अब तुम्हारे साथ कौन मगज-पच्ची करे? काट-कूट करने वाले जो कुतर्की हैं, उनसे महात्मा लोग बात करना पसंद नहीं करते हैं। काट-कूट तो जहाँ नहीं करना हो, वहाँ करो और फिर आओ हमारे पास। हम तुम्हें ‘रामः रामौ रामाः’ थोड़े ही पढ़ायेंगे। हम तो तुम्हें ‘तत्वमस्यादि महावाक्य’ का वाच्यार्थ, लक्ष्यार्थ और ऐक्य बतायेंगे। ‘रामः रामौ रामाः’ के लिए तो जाओ, लघुकौमुदी पढ़ो! तो भगवान् कहते हैं कि ‘अनसूवये’- जो असूयु न हो, अर्थात् गुण में दोष न निकाले। हम तो उसकी भलाई के लिए बात करें कि इस रास्ते से चले आओ, और वह कहे कि महाराज, इधर गड्ढा तो नहीं है? भलेमानुस, मैंने जान-बूझकर तुम्हें बताया है तो क्या तुम्हें गड्ढे में गिरने के लिए बताया है! भगवान् बोले कि मैं तुम्हें गुह्यतम ज्ञान बताता हूँ- ‘ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।’ गुह्यतम ज्ञान क्या है? यह गुह्यतम ज्ञान ब्रह्मज्ञान ही है, परन्तु यहाँ जो ‘इदं’ के साथ ‘तु’ शब्द है, यह पहले बताये हुए से विलक्षण बताने के लिए है। ये जितने धारणा-योग हैं, सब सत्वगुण हैं। अब भगवान् जरा आगे, ऊपर की ओर खींचते हैं। साक्षात् मोक्ष-साधन का जो ज्ञान है, वह क्या है? वह है- ‘यत्र नान्यत् पश्यति नान्यत् श्रृणोति’- जहाँ अन्य का दर्शन नहीं है, अन्य का श्रवण नहीं है। ‘विज्ञातारमरे केन विजानीयात्’ वहाँ जो जिज्ञासा है, उसी का नाम विज्ञान है। तो आओ, अनुभव सहित ज्ञान अब तुम्हें सुनाते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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