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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
अष्टादश अध्याय
इदं ते नातपस्काय नाभक्ताप कदाचन । यह (उपर्युक्त सर्वगुह्यतम तत्व) किसी भी काल में तपरहित को, अभक्त को, सुनना न चाहने वाले को और मुझ (श्रीकृष्ण)-में असूया (दोष दृष्टि) रखने वाले को कभी नहीं बताना चाहिये। जो पुरुष मुझ भगवान् श्रीकृष्ण में पराभक्ति करके इस परम गुह्य (सर्वगुह्यतम) तत्व को (केवल) मेरे भक्तों में (सर्वसाधारण में नहीं) कहेगा, वह निश्चय ही मुझ पुरुषोत्तम भगवान् (श्रीकृष्ण)-को ही प्राप्त होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है तथा पृथ्वी भर में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई होगा भी नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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