विषय सूची
गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
अष्टादश अध्याय
ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत: । गुणों की संख्या करने वाले शास्त्र में ज्ञान, कर्म तथा कर्ता गुणों के भेद से तीन-तीन प्रकार के ही कहे गये हैं, उनको भी तू मुझसे भली-भाँति सुन। जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक्-पृथक् सब भूतों में एक अविनाशी परमात्म भाव को विभागरहित समभाव से स्थित देखता है, उस ज्ञान को तू सात्विक जान। जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण भूतों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान।और जो ज्ञान एक कार्यरूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त है (जिस विपरीत ज्ञान के द्वारा मनुष्य एक क्षणभंगुर अनित्य विनाशी शरीर को ही आत्मा मानकर उसमें पूर्ण रूप से आसक्त रहता है) तथा जो हेतु से रहित, तात्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है, वह तामस कहा गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रकरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज