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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
अष्टादश अध्याय
नियतं सग्ङरहितमरागद्वेषत: कृतम् । जो शास्त्र विहित कर्म कर्तापन के अभिमान से रहित, बिना राग-द्वेष के तथा फल न चाहने वाले पुरुष के द्वारा किया गया हो, वह सात्विक कहलाता है। परंतु जो कर्म बहुत प्रयोग से युक्त होता है और भोगों को चाहने वाले अथवा अहंकार युक्त पुरुष के द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा गया है। जो कर्म परिणाम, हानि, हिंसा और सामथ्र्य को न विचार कर केवल मोह-अज्ञान से आरम्भ किया जाता है, वह तामस कहलाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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